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“भारत विभाजन और उसके परिणाम” विषय पर परिचर्चा का आयोजन

अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, द्वारा विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर बड़ी संख्या में लोगों नें लिया हिस्सा

लखनऊ। लखनऊ एवं झाँसी में संस्थान के उपाध्यक्ष, हरगोविंद बौद्ध के मार्गदर्शन में किया गया। इस परिचर्चा में बौद्ध-जैन शोध संस्थान के अधिकारी व कर्मचारीगण, बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, विद्वान तथा छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सिंधी समाज के नानक चंद लखमानी निवर्तमान उपाध्यक्ष, उ०प्र० सिन्धी एकेडमी थे।
इस अवसर पर नानक चंद लखमानी, सरदार मंजीत सिंह, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के सदस्य भदंत धम्मानंद विवेचन, भिक्षु शीलरतन, तरुणेश, भिक्षु डॉ० उपानंद, श्रीलंका से आये बौद्ध भिक्षु डॉ० जुलाम्पिटये पुण्यासार महाथेरो, अरुणेश, डॉक्टर धीरेंद्र सिंह, भगवतदास शाक्य, निदेशक संस्थान डॉ० राकेश सिंह आदि अनेक वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।
परिचर्चा के प्रारंभ में निदेशक संस्थान डॉ० राकेश सिंह द्वारा संस्थान का संक्षिप्त परिचय दिया गया तथा निदेशक संस्थान ने परिचर्चा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विभाजन की विभीषिका एक बहुत बड़ी मानव निर्मित त्रासदी थी आपने कहा कि सभी संप्रदायों को आपस में प्रेम भाव से रहना चाहिए।
इस दिवस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य भावी पीढ़ियों को विभाजन के कारण होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराना है। तरुणेश ने कहा कि यह अंग्रेजों की साजिश थी। भारत के विभाजन से लाखों लोग बेघर हुए तथा बड़ी संख्या में लोग मारे गए, हमारे देश को स्वतंत्रता के बदले बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।
भिक्षु शीलरतन ने बताया कि विभाजन की विभीषिका हमें सीख देती है कि कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। डॉक्टर भिक्षु उपानंद ने बताया की विभाजन किसी भी प्रकार का हो, कष्टकारी होता है, इससे बचना चाहिए। भदंत धम्मानंद विवेचन ने कहा कि हम सभी को ईर्ष्या-द्वेष की भावना का परित्याग कर समस्याओं का समाधान प्रेम पूर्वक भाईचारे के साथ करना चाहिए।
सरदार मंजीत सिंह ने कहा की देश के बँटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। डॉ० धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि भारत का विभाजन अत्यंत दुखदायीपूर्ण रहा है और इसके कारण वर्तमान में भी हम सभी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह दिवस समाज में फैली नफरत एवं हिंसा के विरुद्ध एकता और सद्भावना के महत्व को बताता है। अरुणेश ने विभाजन से उत्पन्न हुई समस्याओं पर विस्तार रूप से प्रकाश डाला और कहा कि भारत को स्वतंत्र कराने में हम सभी को विभाजन के रूप में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।
भगवत शाक्य ने भारत के विभाजन के दुष्परिणाम पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता नानक चंद लखवानी ने कहा कि भारत के विभाजन में लाखों लोग बेघर हो गए, अपना बसा-बसाया घर, संपत्ति छोड़कर अत्यंत कठिनाईपूर्ण जीवन जीने को विवश हुए।
अंत में निदेशक संस्थान डॉ० राकेश सिंह ने कार्यक्रम में आए हुए गणमान्य अतिथियों, बौद्ध भिक्षुओं, वक्ताओं, मीडिया कर्मियों एवं विद्वानों, छात्र-छात्राओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

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