Breaking News

स्वार्थ की चौसर पर लोकतंत्र

स्वाधीन भारत स्वतंत्रता के अठहत्तरवे पायदान पर चढ़ रहा है। विगत सतहत्तर वर्षों के सफर में लोकतांत्रिक मूल्यों की कितनी रक्षा की है, यह किसी से छिपा नहीं है। इस दौरान लोकतंत्र ने अनेक सबल सरकारें भी देखी हैं तथा बेमेल गठबंधन की बेबस सरकारें भी। राजनीतिक दलों के स्वार्थी विमर्श के चलते देश ने अलगाववाद और आतंकवाद जैसी राष्ट्र विरोधी समस्याओं का भी सामना किया है। लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए सत्ता एवं विपक्ष में राष्ट्र हित के मुद्दों पर सामंजस्य होना अपेक्षित होता है, किन्तु भारतीय लोकतंत्र उस स्थिति की और अग्रसर है, जहाँ सत्य कहने, सत्य को स्वीकारने और सत्य पर अमल करने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। कारण स्पष्ट है कि जिस लोकतंत्र में राष्ट्रहित की अपेक्षा व्यक्तिगत हित सर्वोपरि मानने का चलन बढ़ गया हो, वहां लोकतान्त्रिक मूल्य समता, समानता, न्याय, जनहितकारी नीतियों के अनुपालन की कल्पना कैसे की जा सकती है। विडंबना यही है कि आज लोकतंत्र चंद राजनीतिक परिवारों, चंद जातियों, चंद स्वार्थपूर्ण विमर्शों के बीच उलझ कर रह गया है। सच को सच कहने की हिम्मत का अभाव हो चुका है, जो लोकतंत्र की बड़ी शक्ति हुआ करता था। कौन नहीं जानता कि लोकतंत्र और तानाशाही दोनों विपरीत धाराएं हैं, किन्तु भारत ने 1975 में देश में तानाशाही को भी सहा है और 1977 में जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के नारे को शक्ति प्रदान करके तानाशाही को कुचलकर लोकतंत्र को सुदृढ़ भी किया है। वैश्विक लोकतंत्र परम्परा में सशक्त विपक्ष के साथ साथ समझदार विपक्ष की अनिवार्यता बताई गई है, जो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार राष्ट्र कल्याण के प्रति समर्पित रहे, किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि विपक्ष की परिभाषा ही बदल चुकी है, भारत में विपक्ष अब सकारात्मक भूमिका निभाने में असमर्थ है। राष्ट्र कल्याण एवं तर्कसंगत बदलावों में उसकी भूमिका महज विरोध के लिए विरोध करने तक ही सीमित रह गई है। यदि ऐसा न होता, तो भारत की सीमाओं पर बढ़ती घुसपैठ एवं पड़ोसी देशों के अतिक्रमण के प्रयासों का विपक्ष भी एक सुर में विरोध करता। विदेशों में जाकर विपक्ष के नायक प्रतिनिधि भारत को बदनाम करने का प्रयास न करते। विदेशी शक्तियों के साथ खड़े होकर देश में आर्थिक अराजकता फ़ैलाने का विमर्श न गढ़ते। समय समय पर देश के विकास में बाधक समस्याओं के समाधान हेतु लाए जाने वाले बदलाव विधेयकों का बिना किसी तर्क के विरोध न करते। कौन नहीं जानता कि भारत जैसे कम क्षेत्रफल वाले देश में जनसंख्या विस्फोट ही चुका है। विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश का सेहरा भारत के सर पर सज चुका है। ऐसे में क्या भारत में कठोर जनसंख्या कानून बनाने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनसंख्या पर नियंत्रण की कारगर नीति नहीं बननी चाहिए ? क्या जाति , धर्म, सम्प्रदाय, अगड़ा, पिछड़ा, दलित जैसे विमर्श को तिलांजलि देकर समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा  कदम नहीं उठाना चाहिए। पड़ोसी देशों के घुसपैठियों की पहचान करने तथा उन्हें बेदखल करने के लिए क्या नागरिक पंजीकरण रजिस्टर नहीं बनाया जाना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनके विरोध का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता, फिर भी इन मुद्दों पर देश का विपक्ष मुखर नहीं होता। यह किस प्रकार का लोकतंत्र में समान अधिकार है कि धर्म विशेष के अनुयायी सिविल कानून तो अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप स्वीकारना चाहते हैं तथा उन्हीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फौजदारी विधान नहीं मानना चाहते ? क्या लोकतंत्र में किसी को इतने अधिकार मिलने अपेक्षित हैं, कि जिनमें धर्म को राष्ट्र से श्रेष्ठ मानने की छूट प्राप्त हो ? समझ नहीं आता कि राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसे राजनेताओं पर कठोर संवैधानिक कार्रवाई क्यों नहीं की जाती, जो जातीय और धार्मिक गठबंधन की बात करके देश में अलगाव को सार्वजनिक रूप से  प्रोत्साहन देने में पीछे नहीं रहते। क्या आरक्षण की व्यवस्था की समीक्षा समय समय पर नहीं की जानी चाहिए, कि जिनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है, उसे उसका लाभ मिल रहा है या नहीं ? कहीं उसके हिस्से का लाभ चंद समृद्ध परिवार तो नहीं उठा रहे। इस सच्चाई को कोई नहीं नकार सकता कि पक्ष और विपक्ष की राजनीति करने वाले लोगों में व्यक्तिगत स्वार्थ इस कदर भरा है, कि वे उस स्वार्थ को त्याग कर जनहित में कोई भी ठोस और दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय लेने में असमर्थ हो गए हैं। यही भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद पहलू है, जिस कारण राजनीतिक दलों व नेताओं द्वारा बिछाई गई चौसर पर लोकतंत्र पराजित होता हुआ प्रतीत होता है।  

डॉ. सुधाकर आशावादी
ब्रह्मपुरी, मेरठ
मोबा – 9758341282
 

Spread the love

About budaunamarprabhat.com

Check Also

माहेश्वरी समाज के लोग अपने बच्चों बेहतर शिक्षा जरुर दिलाए

माहेश्वरी समाज के लोग अपने बच्चों बेहतर शिक्षा जरुर दिलाए बिल्सी में संपन्न हुई पश्चिमी …

error: Content is protected !!