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फेक खबरें और तूटता विश्वास, देश के मीडिया से ऐसी नहीं थी आस*

आलेख:-

शीर्षक:-
*फेक खबरें और तूटता विश्वास,*
*देश के मीडिया से ऐसी नहीं थी आस*

लेखक :- प्रतिक संघवी राजकोट गुजरात

भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद मीडिया को यह दर्जा इसलिए दिया गया, क्योंकि यह समाज और सत्ता के बीच एक सेतु का काम करता है। यह जनता की आवाज को उठाता है, सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है और समाज में जागरूकता फैलाता है। लेकिन आज भारत में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। फेक न्यूज, टीआरपी की दौड़ और सनसनीखेज पत्रकारिता ने इसके मूल उद्देश्य को धूमिल कर दिया है। इस लेख में हम मीडिया की भूमिका, उसकी चुनौतियों और गिरती विश्वसनीयता के प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

*मीडिया को चौथा स्तंभ क्यों कहा जाता है?*
लोकतंत्र में मीडिया का काम सत्ता की निगरानी करना, जनता को सूचित करना और सामाजिक मुद्दों पर बहस को बढ़ावा देना है। यह सरकार और नागरिकों के बीच संवाद का माध्यम है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय अखबारों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज भी सच्ची पत्रकारिता समाज के दबे-कुचले वर्गों की आवाज बन सकती है। एक निष्पक्ष और साहसी मीडिया सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करता है, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है। यही कारण है कि इसे चौथा स्तंभ कहा जाता है।

*फेक न्यूज और टीआरपी की दौड़*
आज के दौर में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा टीआरपी और आर्थिक लाभ के पीछे भाग रहा है। युद्ध, संकट या सामाजिक उथल-पुथल के समय फेक न्यूज का प्रसार तेजी से बढ़ता है। इसका कारण है सनसनीखेज खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, ताकि दर्शकों का ध्यान खींचा जाए। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में भारत-पाकिस्तान तनाव या कोविड-19 महामारी के दौरान , नोटबंदी के समय और अभी अभी युद्ध के दौरान कई न्यूज चैनलों ने गलत सूचनाएं फैलाईं, जिससे जनता में भय और भ्रम फैला। फेक न्यूज सिर्फ गलत जानकारी तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है और समाज में तनाव पैदा करती है। टीआरपी की इस दौड़ में कई बड़े मीडिया हाउस तथ्यों की जांच को नजरअंदाज कर देते हैं। दूसरी ओर, छोटे और स्वतंत्र पत्रकार या अखबार, जो सच्चाई के लिए काम करते हैं, संसाधनों की कमी और दबाव के कारण दब जाते हैं। फिर भी, इनका वजूद समाज के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये सत्य को सामने लाने का प्रयास करते हैं।और सरकार को और इन्फॉर्मेशन ब्रॉडकास्ट मिनिस्ट्री को भी इसमें एक्शन लेना होगा वरना कभी कभी यह स्थिति बेकाबू भी हो सकती हे।

*मीडिया पर गालियों का दौर*
पहले एक समय था जब कोई अपने आप को पत्रकार या मीडिया से जुड़ा हुआ बताता तो उसको एक अलग सम्मान की नजरों से देख जाता लेकिन भारत में मीडिया को गाली देना अब आम बात हो गई है। “गोदी मीडिया” जैसे शब्दों का इस्तेमाल आम जनता और राजनेताओं द्वारा खुलकर किया जाता है। इसका कारण यह है कि कुछ मीडिया हाउस सत्ताधारी दलों या कॉरपोरेट हितों के पक्ष में खबरें चलाते हैं, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। सोशल मीडिया ने इस अविश्वास को और बढ़ाया है, जहां लोग खबरों की सत्यता पर सवाल उठाते हैं और वैकल्पिक सूचना स्रोतों पर भरोसा करते हैं। इसके बावजूद, सभी पत्रकार या मीडिया हाउस एक जैसे नहीं हैं। कई पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर सच को सामने लाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे अखबार और डिजिटल प्लेटफॉर्म समाज के हाशिए पर रहने वालों की आवाज उठाते हैं। लेकिन उनकी आवाज मुख्यधारा के शोर में दब जाती है।

*गिरती विश्वसनीयता और विस्फोटक स्थिति*
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग लगातार गिर रही है। 2024 में भारत 180 देशों में 159वें स्थान पर था, जो चिंताजनक है। यह गिरावट पत्रकारों पर हमलों, सरकारी दबाव और स्वतंत्र पत्रकारिता पर बढ़ते प्रतिबंधों का परिणाम है। जब मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो देता है, तो जनता का लोकतंत्र पर भरोसा भी कम होता है। इसका परिणाम सामाजिक अस्थिरता के रूप में सामने आ सकता है। जब लोग सच्चाई पर भरोसा नहीं करते, तो अफवाहें और गलत सूचनाएं तेजी से फैलती हैं। यह सामाजिक एकता को तोड़ सकती हैं और हिंसा को बढ़ावा दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, फेक न्यूज के कारण कई बार सांप्रदायिक दंगे भड़के हैं।

*आगे का रास्ता और लोगो की मदद*
मीडिया की विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए कुछ कदम जरूरी हैं:
निष्पक्षता और जवाबदेही: मीडिया हाउस को तथ्यों की जांच पर जोर देना होगा और सनसनीखेज पत्रकारिता से बचना होगा।
पत्रकारों की सुरक्षा: सरकार को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, ताकि वे बिना डर के काम कर सकें।और साथ ही साथ जनता को भी सही चैनल और पत्रकारों को ढूंढकर उसके ही न्यूज देखने की ठान लेनी होगी। और अच्छे न्यूज से बचकर सच्चे न्यूज तरफ जाना होगा और उसको ही साथ देना होगा।
मीडिया साक्षरता: जनता को फेक न्यूज और प्रचार से बचने के लिए शिक्षित करना जरूरी है। स्कूलों और समुदायों में मीडिया साक्षरता कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं।
स्वतंत्र पत्रकारिता को समर्थन: छोटे और स्वतंत्र मीडिया हाउस को आर्थिक और सामाजिक समर्थन देना होगा, ताकि वे सत्य को सामने ला सकें।

*कोई छोटे से छोटा पेपर या पत्रकार पूरे देश को चलाने का दम रखता हे*
जी हा अगर सच्चाई से काम किया जाए तो मीडिया की लाइन में छोटा बड़ा कुछ नहीं होता हे जो मूल हे वो सत्य और सच्चाई वाले न्यूज बीना डरे दिखाने की क्षमता ही काफी हे। अगर ऐसा कोई चेनल या पेपर चल जाए और उसे लोगो का साथ मिल जाए तो वो पूरे देश को चला सकता हे या नया रास्ता दिखा सकता हे।मीडिया को चौथा स्तंभ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह लोकतंत्र की रीढ़ है। लेकिन जब यह टीआरपी और फेक न्यूज के चक्कर में पड़ जाता है, तो इसका प्रभाव समाज पर विनाशकारी हो सकता है। सच्ची पत्रकारिता, चाहे वह छोटे अखबारों या डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से हो, समाज का भरोसा जीत सकती है। भारत में मीडिया को अपने मूल उद्देश्य की ओर लौटना होगा, ताकि यह जनता की आवाज बन सके, न कि सत्ता या कॉरपोरेट हितों का औजार। यदि मीडिया अपनी विश्वसनीयता को पुनः स्थापित नहीं करता, तो यह लोकतंत्र के लिए एक विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकता है।

लेखक – प्रतीक संघवी राजकोट गुजरात

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