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इंडिया में भी दाढ़ों में चांदी फिलिंग से मिलेगी जल्द मुक्ति

पैलोडेंट मैट्रिक्स सिस्टम के संग कम्पोजिट रेस्टोरेशन ट्रीटमेंट बना अमलगम-चांदी का आधुनिक विकल्प, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के डेंटल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर में आयोजित वर्कशॉप में दिल्ली के की-नोट स्पीकर डॉ. निखिल बहुगुणा ने बीडीएस और एमडीएस स्टुडेंट्स को सिखाई नई तकनीक

मुरादाबाद। यदि आपकी दाढ़ में कीड़ा लग गया है या दाढ़ खोखली हो गई है तो अब आपको दाढ़ों में चांदी फिलिंग की कोई आवश्यकता नहीं होगी। यह तकनीक पुरानी हो चुकी है। अमेरिका ने तो इस तकनीक पर पाबंदी लगा दी है, जबकि भारत में चांदी फिलिंग की तकनीक धीरे-धीरे विदाई की ओर है। पैलोडेंट मैट्रिक्स सिस्टम के संग कम्पोजिट रेस्टोरेशन ट्रीटमेंट अमलगम-चांदी का आधुनिक विकल्प बनकर उभरा है। पुरानी तकनीक में सिटिंग-दर-सिटिंग, दातों की बदसूरती, अल्पावधि का टिकाऊपन आदि मरीजों की परेशानी का सबब रहे हैं। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के डेंटल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर में आयोजित वर्कशॉप में दिल्ली के की-नोट स्पीकर एवम् अनुभवी डेंटिस्ट डॉ. निखिल बहुगुणा ने बीडीएस और एमडीएस स्टुडेंट्स को करीब पांच घंटे तक आर्टिफिशियल जबड़े के जरिए नई तकनीक को विस्तार से समझाया। इस दौरान बीडीएस और एमडीएस के स्टुडेंट्स ने तमाम सवाल भी किए। कंजर्वेटिव डेंटिस्ट्री एंड एंडोडोंटिक्स विभाग के एचओडी डॉ. अभिनय अग्रवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया, वर्कशॉप में डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन, डेंटल कॉलेज की डायरेक्टर गवर्नेंस श्रीमती नीलिमा जैन, डेंटल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. प्रदीप तांगडे, वाइस प्रिंसिपल डॉ. अंकिता जैन आदि की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। संचालन डॉ. अभिनय अग्रवाल और डॉ. सलीम अजहर ने संयुक्त रुप से किया।

उल्लेखनीय है, दांतों के ट्रीटमेंट में कम्पोजिट- दांतों के रंग की फिलिंग को अमलगल- चांदी की तुलना में अब वरीयता दी जाती है। की-नोट स्पीकर डॉ. बहुगुणा ने डेंटल स्टुडेंट्स को बताया, बेहतर सौन्दर्यकरण, दांतों की न्यूनतम कटाई, मरकरी विषाक्तता का न होना कम्पोजिट ट्रीटमेंट की विशेषताएं हैं। पैलोडेंट मैट्रिक्स सिस्टम के उपयोग के बारे में भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, पारंपारिक लकड़ी के बैज सिस्टम की तुलना में पैलोडेंट मैट्रिक्स सिस्टम के कई लाभ हैं। पारंपारिक सिस्टम मसूड़ों को नुकसान पहुंचाता है। प्राकृतिक आकार नहीं देता है। इस नई तकनीकी के इजाद से अब दांत-दांढ़ के मरीजों को दांत के रंग जैसे दिखने वाले रेस्टोरेशन मिलेंगे, जो प्राकृतिक दिखते हैं। अधिक समय तक टिके रहते हैं। अनावश्यक रुप से दांत को काटने की आवश्यकता नहीं होती। समय की बचत होती है। दांत-दांढ़ों का सम्पर्क नेचुरली है। इनकी मरम्मत भी आसानी से की जा सकती है। डेंटल कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल डॉ. अंकिता जैन कहती हैं, यह नई विधि डेंटल डॉक्टर्स के संग-संग पेशेंट के लिए भी वरदान साबित होगी।

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