तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के तीर्थंकर पार्श्वनाथ कॉलेज ऑफ नर्सिंग, अमरोहा की ओर से शिक्षा में नवोन्मेषी शिक्षण रणनीतियों और अनुसंधान दक्षताओं का एकीकरण पर दो दिनी कार्यशाला
मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के तीर्थंकर पार्श्वनाथ कॉलेज ऑफ नर्सिंग, अमरोहा की ओर से शिक्षा में नवोन्मेषी शिक्षण रणनीतियों और अनुसंधान दक्षताओं का एकीकरण पर दो दिवसीय कार्यशाला में डिजिटल टूल्स एंड ई-लर्निंग प्लेटफार्म्स इन मॉर्डन एरा एजुकेशन, टाइप्स ऑफ रिसर्च एंड रेलेवेंशइन क्लिनिकल प्रैक्टिस, रोल ऑफ एजुकेर्ट्स इन फोसटरिंग क्रिटिकल थिंकिंग, हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग ऑनः एआई टूल्स फॉर स्मार्टर टीचिंग एंड लर्निंग, केस स्टडी सिनेरियो ऑन एविडेंस-बेस्ड प्रैक्टिस इन क्लिनिकल रिसर्च पर व्याख्यान हुए। सत्र का समापन प्रतिभागियों के इंटरएक्टिव प्रश्नोत्तर के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने शोध प्रस्ताव कैसे लिखें, डेटा संग्रहण की नैतिकता, और छात्रों के लिए शोध में प्रारंभिक कदम जैसे विषयों पर जिज्ञासाएं साझा कीं। कार्यशाला के समापन सत्र में टीपीसीओएन की प्राचार्या प्रो. श्योली सेन ने धन्यवाद दिया। उन्होंने उम्मीद जताई, इस वर्कशॉप से प्रतिभागियों की सोच में एक नवाचारात्मक दृष्टिकोण और अनुसंधानात्मक दृष्टि विकसित हुई है, जो भविष्य की नर्सिंग शिक्षा और अभ्यास को एक नई दिशा देगा। वर्कशॉप में नर्सिंग की डीन प्रो. एसपी सुभाषिनी की उल्लेखनीय मौजूदगी रही।टीएमयू आईक्यूएसी के निदेशक डॉ. निशीथ कुमार मिश्रा ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली में डिजिटल उपकरणों और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कोविड-19 के बाद डिजिटल शिक्षा एक अनिवार्यता बन चुकी है और शिक्षकों को इसके प्रति तकनीकी रूप से दक्ष होना आवश्यक है। उन्होंने गूगल क्लासरुम, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स जैसे प्लेटफॉर्म्स के प्रयोग का सुझाव दिया। डॉ. मिश्रा ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित शिक्षा उपकरण, ऑनलाइन असेसमेंट टूल्स और उनकी वैधता, फ्लिप्ड क्लासरूम और हाइब्रिड लर्निंग के लाभ पर भी विस्तार से चर्चा की। अनुसंधान एवं विकास के एसोसिएट डीन डॉ. पीयूष मित्तल ने अनुसंधान के विविध प्रकारों और उनकी नैदानिक अभ्यास में उपयोगिता को बताते हुए कहा कि एक कुशल नर्सिंग पेशेवर न केवल रोगी की देखभाल करता है, बल्कि वह एक ज्ञान निर्माता भी होता है, जो अपने अनुभवों और निरीक्षणों को अनुसंधान के माध्यम से चिकित्सा क्षेत्र में योगदान देता है। उन्होंने मात्रात्मक अनुसंधान, गुणात्मक अनुसंधान, मिश्रित विधियां, अन्वेषणात्मक, वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक, और अनुवीक्षणात्मक अध्ययन की भी विस्तार से चर्चा की। डॉ. मित्तल ने कहा, रोगी सुरक्षा, संक्रमण नियंत्रण, दर्द प्रबंधन, रोगी शिक्षा आदि नैदानिक अभ्यासों में अनुसंधान महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने पीआईसीओटी मॉडल की विस्तार से व्याख्या करते हुए रिसर्च क्वेश्चन बनाने की प्रक्रिया भी बताई।
सीटीएलडी के डायरेक्टर डॉ. पंकज कुमार सिंह ने कहा, शिक्षकों को अब पारंपरिक शिक्षण पद्धतियों से आगे बढ़ते हुए छात्रों को विचारशील, विश्लेषणात्मक और समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाना चाहिए। उन्होंने विश्लेषण, मूल्यांकन, निष्कर्ष, केस स्टडी, समूह चर्चा, डिबेट, कक्षा में सक्रिय सहभागिता का महत्व, मूल्यांकन पद्धति में बदलाव और छात्र-केंद्रित शिक्षा पर विस्तार से चर्चा की। टीपीसीओएन की प्राचार्या प्रो. श्योली सेन ने प्रतिभागियों को विभिन्न डिजिटल और एआई आधारित शिक्षण टूल्स जैसे- चैटजीपीटी, कैनवा, कहूत, क्विज, कस्टमाइज्ड कंटेंट निर्माण के लिए एआई टूल्स का प्रयोग, इंटरएक्टिव क्लासरूम के लिए एआई आधारित प्रेजेंटेशन एंड टेस्ट, छात्र सहभागिता बढ़ाने के लिए गेमिफिकेशन तकनीक आदि के प्रयोग की ट्रेनिंग दी। डॉ. टी. सेंथिल ने प्रतिभागियों को एबिडेंस बेस्ड प्रैक्टिस-ईबीपी की अवधारणा आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं में उच्च गुणवत्ता की देखभाल का आधार बन चुका है। सर्वाेत्तम अनुसंधान साक्ष्य, चिकित्सकीय विशेषज्ञता और रोगी की प्राथमिकताएं ईबीपी के तीन स्तंभ हैं। डॉ. सेथिल ने एक काल्पनिक नैदानिक परिदृश्य के जरिए प्रतिभागियों की आलोचनात्मक सोच, टीम वर्क और शोध में साक्ष्य की भूमिका को व्यावहारिक रूप समझाया। कार्यशाला में आईआईसी समन्वयक श्री मुकुल कुमार, सुश्री शालू उपाध्याय, श्री सिद्धेश्वर अंगड़ी, सुश्री दीक्षा यादव, श्रीमती अंकिता चौहान, सुश्री दीक्षा शर्मा, सुश्री पारुल गिल, सुश्री शशी, सुश्री छाया राठौर आदि की मौजूदगी रही।