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जैन गणित एक जीवंत और प्रासंगिक बौद्धिक परंपरा

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस की ओर से भारतीय ज्ञान प्रणाली में जैन गणितज्ञों का योगदान पर आयोजित चौथी ऑनलाइन कॉन्क्लेव

ख़ास बातें
उम्मास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र में समय और गणना की जटिल संरचनाओं का उल्लेख
9वीं शताब्दी में महावीराचार्य का गणितसारसंग्रह भारत का पहला पूर्ण गणितीय ग्रंथ
स्यादवाद, अनेकान्तवाद, सप्तभंगी न्याय सिद्धांत एआई के लिए भी अति महत्वपूर्ण
जैन साहित्य में खगोलीय गणना, आयाम, समय और स्थान की स्पष्ट अवधारणाएं
आईकेएस श्रमण और वैदिक परंपराओं के संग जैन, बौद्ध, वैदिक तत्वों का संगम

मुरादाबाद। कुंदकुंद ज्ञानपीठ एवं गणिनी ज्ञानमति शोधपीठ यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सम्मानित सदस्य प्रो. एससी अग्रवाल ने कहा, जैन गणित केवल दार्शनिक या धार्मिक चिंतन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह एक वैज्ञानिक और गणितीय तर्क प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है, जिसकी प्रासंगिकता आज के समकालीन विज्ञान और गणित में भी बनी हुई है। जैन गणित ने न केवल असीमता और सूक्ष्मता जैसी जटिल अवधारणाओं को बहुत पहले ही विश्लेषित किया, बल्कि ब्रह्मांडीय संरचना, समय, दिशा, और आकाशीय पिंडों के गणनात्मक विश्लेषण में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय विद्वानों जैसे मेजर जनरल जे जी फर्लाेग, हेनरिच जेमर एवं हरमैन याकूबा की जैन गणित को वैश्विक बौद्धिक मंच पर प्रस्तुत करने वाली कृतियों का उल्लेख किया। प्रोफेसर एस .सी. अग्रवाल ने स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि 500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी के मध्य रचित जैन ग्रंथों पर और अधिक गंभीर शोध और अध्ययन की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जैन गणित केवल अतीत की कोई सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि एक जीवंत और प्रासंगिक बौद्धिक परंपरा है, जिसे आज के वैज्ञानिक विमर्श और शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए। प्रो. अग्रवाल तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र- आईकेएस की ओर से भारतीय ज्ञान प्रणाली में जैन गणितज्ञों का योगदान पर आयोजित चौथी ऑनलाइन कॉन्क्लेव में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। इससे पूर्व मां सरस्वती की वंदना के संग कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
होलकर विज्ञान महाविद्यालय में गणित विभाग के एचओडी प्रो. एसके बंडी बोले, प्राचीन भारत में गणित और खगोलशास्त्र का अटूट संबंध रहा है। यह संबंध केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। सिंधु घाटी सभ्यता में गणितीय सोच के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। उनकी ईंटें निश्चित अनुपात में बनाई जाती थीं, नगर नियोजन में सममितीयता और जलनिकासी की व्यवस्था में माप प्रणाली का उपयोग स्पष्ट दिखाई देता है। ये प्रमाण दर्शाते हैं कि गणितीय सोच भारत की सभ्यताओं में प्रारंभ से ही मौजूद थी। उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र में समय और गणना की जटिल संरचनाओं का उल्लेख है। जैन गणना पद्धति में काल पुरुष, मेरु पर्वत, नक्षत्र विभाजन और उत्तरायण-दक्षिणायन जैसे तत्वों को शामिल किया गया है। उन्होंने भारतीय खगोल शास्त्र के चार काल खंड प्राचीन काल, स्वर्ण युग, मध्यकाल और आधुनिक काल के विषय में बताया। आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य आदि स्वर्ण युग के प्रमुख विद्वान थे। 18वीं शताब्दी में महाराजा जय सिंह द्वितीय ने खगोलशास्त्र को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में पाँच प्रमुख वेधशालाएं बनवाईं।
मैसूर यूनिवर्सिटी में गणित के प्रो. पद्मावतथम्मा बोले, भारतीय गणित का विकास केवल गिनती और ज्यामिति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह जीवन, दर्शन और ब्रह्मांड की समझ तक विस्तृत रहा है। इस विकास में जैन परंपरा का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन ग्रंथों में संख्या, काल, दिक्, अनंत की अवधारणाओं को जिस तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है, वह अन्य किसी भी परंपरा में दुर्लभ है। विशेष रूप से 9वीं शताब्दी में महावीराचार्य की ओर से रचित गणितसारसंग्रह एक महान ग्रंथ है, जिसे भारत का पहला पूर्ण गणितीय ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ में अंकगणित, क्षेत्रमिति, बीजगणितीय तकनीकें, प्रमाण, यमक संख्याएं, तथा वास्तविक जीवन की गणनाएं जैसे विषयों को सरल, क्रमबद्ध और व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। महावीराचार्य की रचनाओं में धर्म, खगोलशास्त्र, मापन और ब्रह्मांडीय संरचना के गणितीय पक्षों को एक सुसंगत ढंग से समझाया गया है। वे गणित को केवल शास्त्र नहीं, बल्कि जीवन में उपयोगी उपकरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
माता कंकेश्वरी देवी शासकीय महाविद्यालय, इंदौर मप्र की विज्ञान संकाय की एचओडी डॉ. प्रगति जैन बोलीं, जैन दर्शन सदा से ही तर्क और बहु-दृष्टिकोण की संस्कृति को पोषित करता रहा है। विशेष रूप से स्यादवाद, अनेकान्तवाद और सप्तभंगी न्याय जैसे सिद्धांत आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी विकास विशेषकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता- एआई के लिए भी मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। अनेकान्तवाद का अर्थ है, वास्तविकता को एक से अधिक दृष्टिकोण से देखना। यह स्वीकार करता है कि कोई भी वस्तु या विचार केवल एक पक्ष से पूर्ण रूप से समझा नहीं जा सकता। स्यादवाद भी इसी विचार को आगे बढ़ाता है। स्यादवाद कहता है, हर कथन संदर्भ सापेक्ष होता है यानी यह हो सकता है कि यह सत्य हो। इससे हमें विचारों में कठोरता के स्थान पर लचीलापन और सहिष्णुता मिलती है। यदि हम जैन सिद्धांतों को एआई में लागू करें, तो हम तकनीक को न केवल अधिक स्मार्ट, बल्कि अधिक नैतिक और मानवीय भी बना सकते हैं। आज की एआई प्रणालियाँ अधिकतर बाइनरी लॉजिक जैसे- हां, नहीं, सत्य, असत्य पर आधारित होती हैं, जबकि असल ज़िंदगी के निर्णय कई बार बहुस्तरीय, संदर्भ-आधारित और संवेदनशील होते हैं।
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. वीके जैन ने भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराई, उसकी वैज्ञानिकता और समसामयिक प्रासंगिकता को उजागर किया। उन्होंने बताया कि जैन धर्म न केवल एक आध्यात्मिक दर्शन है, बल्कि इसमें गणितीय चिन्तन की भी समृद्ध परंपरा रही है। जैन ग्रंथों में संख्याओं की अवधारणा, अनंत के विभिन्न प्रकार, और ज्यामितीय विचारों की व्यापक चर्चा मिलती है। प्रो. जैन ने जैन साहित्य जैसे सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रतिज्ञप्ति और लोकविभाग सूत्र का उल्लेख किया, जिनमें गणितीय सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है। उन्होंने बताया कि कैसे इन ग्रंथों में खगोलीय गणना, आयाम, समय और स्थान की अवधारणाएं स्पष्ट रूप से दी गई हैं। उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र की चर्चा करते हुए आचार्य उमास्वामी के योगदान को रेखांकित किया, जिन्होंने दर्शन और विज्ञान के समन्वय से गणितीय तत्वों को सूत्रबद्ध किया। उमास्वामी का कार्य जैन गणित के तात्त्विक आधार को स्पष्ट करता है और यह दर्शाता है कि गणित को व्यवहारिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे जोड़ा जा सकता है।
टीएमयू आईकेएस सेंटर के प्रोफेसर चेयर डॉ. अनुपम कुमार जैन ने कहा, जिस प्रकार मयूरों में शिखा होती है, नागों में मणि होती है, उसी प्रकार वेदों में गणित होता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि गणित भारतीय ज्ञान परंपरा की शोभा और सार है। जैसे मयूर की शोभा उसकी शिखा से होती है और नाग की पहचान उसके मस्तक की मणि से होती है, वैसे ही वेदों एवं समस्त भारतीय दर्शन की बौद्धिक गरिमा गणितीय चिन्तन से ही परिपूर्ण होती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में गणित को केवल संख्याओं की गणना मात्र न मानकर, एक गहन दार्शनिक और तात्त्विक अनुशासन के रूप में देखा गया है। डॉ. जैन ने भारतीय ज्ञान परंपरा को श्रमण और वैदिक परंपराओं का सुंदर संगम बताया, जिसमें जैन, बौद्ध और वैदिक तत्वों का संतुलन देखने को मिलता है। कार्यक्रम में टीएमयू आईक्यूएसी के डायरेक्टर प्रो. निशीथ मिश्रा के संग-संग डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन, प्रो. राजीव वर्मा, डॉ. अभिनव सक्सेना, डॉ. विपिन कुमार, डॉ. आलोक गहलोत, डॉ. बसवराज मुढोल, डॉ. कमलेश, डॉ. वैभव रस्तोगी आदि भी ऑनलाइन मौजूद रहे। संचालन भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की समन्वयक, डॉ. अलका अग्रवाल और डॉ. माधव शर्मा ने किया।

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